देशद्रोह के नाम पर सरकार की मनमानी पर “सुप्रीम” रोक

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*162 साल पुराने राजद्रोह कानून पर सर्वोच्च अदालत ने लगाईं रोक*
*सरकार पर विरोधियोँ को सबक सिखाने के लिये इस कानून के दुरूपयोग का आरोप है*

{sarokaar news} – सर्वोच्च न्यायलय ने आज एक ऐतिहासिक आदेश देते हुये कहा है कि 162 साल पुराने राजद्रोह कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 124A तब तक स्थगित रखा जाना चाहिए जब तक कि केंद्र सरकार इस प्रावधान पर पुनर्विचार नहीं करती। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से तब तक इस प्रावधान के तहत कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करने को कहा, जब तक इस पर पुनर्विचार नहीं हो जाता। भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि धारा 124 ए के तहत लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए।

दरअसल राजद्रोह के कानून का सरकारें अपने हितों को साधने के रूप में दुरूपयोग कर रहीं थी और मानवाधिकार कार्यकर्ता लगातार इसका विरोध कर रहे थे, काबिलेगौर है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2019 के बीच देशद्रोह के तक़रीबन 326 मामले दर्ज किये गए और अकेले असम में धारा 124a के अंतर्गत 54 मामले दर्ज हुये।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी प्राथमिकी दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124 ए के तहत जबरन कदम उठाने से परहेज करेंगी. कोर्ट ने कहा कि जो लोग पहले से ही आईपीसी की धारा 124ए के तहत जेल में हैं, वे जमानत के लिए संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अगर कोई नया मामला दर्ज किया जाता है तो संबंधित पक्ष राहत पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और अदालतों से अनुरोध किया जाता है कि वे कोर्ट से पारित आदेश को ध्यान में रखते हुए मांगी गई राहत की जांच करें।